मुझ को गहराई में मिट्टी की उतर जाना है
By munawwar-ranaNovember 9, 2020
मुझ को गहराई में मिट्टी की उतर जाना है
ज़िंदगी बाँध ले सामान-ए-सफ़र जाना है
घर की दहलीज़ पे रौशन हैं वो बुझती आँखें
मुझ को मत रोक मुझे लौट के घर जाना है
मैं वो मेले में भटकता हुआ इक बच्चा हूँ
जिस के माँ बाप को रोते हुए मर जाना है
ज़िंदगी ताश के पत्तों की तरह है मेरी
और पत्तों को बहर-हाल बिखर जाना है
एक बे-नाम से रिश्ते की तमन्ना ले कर
इस कबूतर को किसी छत पे उतर जाना है
ज़िंदगी बाँध ले सामान-ए-सफ़र जाना है
घर की दहलीज़ पे रौशन हैं वो बुझती आँखें
मुझ को मत रोक मुझे लौट के घर जाना है
मैं वो मेले में भटकता हुआ इक बच्चा हूँ
जिस के माँ बाप को रोते हुए मर जाना है
ज़िंदगी ताश के पत्तों की तरह है मेरी
और पत्तों को बहर-हाल बिखर जाना है
एक बे-नाम से रिश्ते की तमन्ना ले कर
इस कबूतर को किसी छत पे उतर जाना है
12692 viewsghazal • Hindi