मुझे ये डर है कि अब बस यही न कर बैठूँ
By aadarsh-dubeyFebruary 25, 2024
मुझे ये डर है कि अब बस यही न कर बैठूँ
तिरी ख़ुशी में कहीं ख़ुद-कुशी न कर बैठूँ
वो सुन के इस लिए मुझ को जवाब देता नहीं
सवाल उस से कोई आख़िरी न कर बैठूँ
मैं जिस को ढूँड रहा था वो मिल गया मुझ में
तमाम शिकवे गिले आज ही न कर बैठूँ
हर एक सम्त मुझे तू दिखाई देता है
मैं एक 'इश्क़ के पीछे कई न कर बैठूँ
बड़े जतन से बनाया है उस ने जिस को ख़ुदा
कहीं मैं छू के उसे आदमी न कर बैठूँ
चले भी आओ के इक रोज़ ये भी मुमकिन है
तुम्हारे नाम मैं ये ज़िंदगी न कर बैठूँ
कुछ इस लिए भी तवज्जोह-तलब ज़ियादा हूँ
जो कह रहा हूँ कहीं वाक़'ई न कर बैठूँ
तिरी ख़ुशी में कहीं ख़ुद-कुशी न कर बैठूँ
वो सुन के इस लिए मुझ को जवाब देता नहीं
सवाल उस से कोई आख़िरी न कर बैठूँ
मैं जिस को ढूँड रहा था वो मिल गया मुझ में
तमाम शिकवे गिले आज ही न कर बैठूँ
हर एक सम्त मुझे तू दिखाई देता है
मैं एक 'इश्क़ के पीछे कई न कर बैठूँ
बड़े जतन से बनाया है उस ने जिस को ख़ुदा
कहीं मैं छू के उसे आदमी न कर बैठूँ
चले भी आओ के इक रोज़ ये भी मुमकिन है
तुम्हारे नाम मैं ये ज़िंदगी न कर बैठूँ
कुछ इस लिए भी तवज्जोह-तलब ज़ियादा हूँ
जो कह रहा हूँ कहीं वाक़'ई न कर बैठूँ
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