मुक़द्दर अपना बरगश्ता मुख़ालिफ़ आसमाँ अपना
By shankar-lal-shankarNovember 19, 2020
मुक़द्दर अपना बरगश्ता मुख़ालिफ़ आसमाँ अपना
वो क्या रूठा कि दुश्मन हो गया सारा जहाँ अपना
इलाही हो गया बे-वज्ह दुश्मन बाग़बाँ अपना
कहाँ ले जाएँ गुलशन से उठा कर आशियाँ अपना
बिगड़ जाए न गुलचीं है ज़माने की हवा बिगड़ी
बनाया तो है बुलबुल शाख़-ए-गुल पर आशियाँ अपना
फ़साना बन के अपना इश्क़ दुनिया की ज़बाँ पर है
दिया था हम ने दिल तुम को समझ कर राज़-दाँ अपना
वफ़ा की क़दर क्या होती सितम के हो गए ख़ूगर
बनाया उन को दुश्मन हम ने दे कर इम्तिहाँ अपना
ख़ुदा की ज़ात पर हम को तो ऐ 'शंकर' भरोसा है
बला से दुश्मन-ए-जाँ हो जो है सारा जहाँ अपना
वो क्या रूठा कि दुश्मन हो गया सारा जहाँ अपना
इलाही हो गया बे-वज्ह दुश्मन बाग़बाँ अपना
कहाँ ले जाएँ गुलशन से उठा कर आशियाँ अपना
बिगड़ जाए न गुलचीं है ज़माने की हवा बिगड़ी
बनाया तो है बुलबुल शाख़-ए-गुल पर आशियाँ अपना
फ़साना बन के अपना इश्क़ दुनिया की ज़बाँ पर है
दिया था हम ने दिल तुम को समझ कर राज़-दाँ अपना
वफ़ा की क़दर क्या होती सितम के हो गए ख़ूगर
बनाया उन को दुश्मन हम ने दे कर इम्तिहाँ अपना
ख़ुदा की ज़ात पर हम को तो ऐ 'शंकर' भरोसा है
बला से दुश्मन-ए-जाँ हो जो है सारा जहाँ अपना
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