मुख़ालिफ़ है सबा-ए-नामा-बर कुछ और कहती है उधर कुछ और कहती है इधर कुछ और कहती है न तू दुश्मन के घर सोया न तू दुश्मन के घर जागा ये सब सच है तिरी सूरत मगर कुछ और कहती है उधर मद्द-ए-नज़र उन को छुपाना राज़ उल्फ़त का इधर कम्बख़्त मेरी चश्म-ए-तर कुछ और कहती है तसव्वुर दिल में शायद आ गया है घर के जाने का ये अंगड़ाई तिरी वक़्त-ए-सहर कुछ और कहती है नहीं मा'लूम 'मुज़्तर' मर गया या साँस बाक़ी है इलाही ख़ैर शक्ल-ए-चारागर कुछ और कहती है