मुख़्तसर से मुख़्तसर ये इश्क़ का अंजाम है हर तमन्ना मुज़्तरिब हर आरज़ू नाकाम है बंद आँखें देख कर वक़्त-ए-सहर हैराँ न हो अब तो बीमार-ए-मोहब्बत को सहर भी शाम है देखना बीमार-ए-ग़म ने चुपके चुपके क्या कहा हाल-ए-दिल कुछ कह रहा है या किसी का नाम है मेरी हस्ती पैकर-ए-इबरत है आलम के लिए मेरी बर्बादी मोहब्बत का खुला अंजाम है मेरा जज़्ब-ए-इश्क़ आख़िर मेरा जज़्ब-ए-इश्क़ है हुस्न को नीचा दिखा दूँ जब तो मेरा नाम है क्यों नहीं देती जवाब उन को निगाह-ए-इल्तिफ़ात मुझ पे क्यों आख़िर सुकून-ए-क़ल्ब का इल्ज़ाम है देखना तशरीफ़ लाते हैं जनाब-ए-‘आरज़ू’ हाथ में शीशा बग़ल में इक सुबू-ए-ख़ाम है