मुनहसिर सुब्ह से ये शाम कहीं बेहतर है

By aditya-tiwari-shamsFebruary 22, 2025
मुनहसिर सुब्ह से ये शाम कहीं बेहतर है
सोने के पिंजरे से तुर्बत का मकीं बेहतर है
ज़ीस्त कहती है भँवर छोड़ किनारे पे चलो
प्यास कहती है ठहर जाओ यहीं बेहतर है


मुझ से पहले मिरी ख़ुद्दारी मदद-गारों से
कहने लगती है जहाँ हूँ मैं वहीं बेहतर है
जब भी टूटे हुए तारे को मिली गोद इस की
तब सितारे को लगा 'शम्स' ज़मीं बेहतर है


49419 viewsghazalHindi