मुक़द्दर आज़माना चाहता हूँ
By abdul-majeed-dard-bhopaliApril 24, 2024
मुक़द्दर आज़माना चाहता हूँ
तुम्हारा आस्ताना चाहता हूँ
शब-ए-फ़ुर्क़त मुसलसल आँसुओं से
लगी दिल की बुझाना चाहता हूँ
ख़ुदा जाने वो किस का आस्ताँ है
जहाँ मैं सर झुकाना चाहता हूँ
मुझे बख़्शा है जिस ने ग़म उसी को
शरीक-ए-ग़म बनाना चाहता हूँ
तिरी मख़मूर आँखों के तसद्दुक़
यहीं अब डूब जाना चाहता हूँ
जहाँ वो नक़्श-ए-पा मिल जाए मुझ को
वहीं का'बा बनाना चाहता हूँ
न पूछ ऐ 'दर्द' मेरी वुसअ'त-ए-शौक़
हुदूद-ए-ग़म बढ़ाना चाहता हूँ
तुम्हारा आस्ताना चाहता हूँ
शब-ए-फ़ुर्क़त मुसलसल आँसुओं से
लगी दिल की बुझाना चाहता हूँ
ख़ुदा जाने वो किस का आस्ताँ है
जहाँ मैं सर झुकाना चाहता हूँ
मुझे बख़्शा है जिस ने ग़म उसी को
शरीक-ए-ग़म बनाना चाहता हूँ
तिरी मख़मूर आँखों के तसद्दुक़
यहीं अब डूब जाना चाहता हूँ
जहाँ वो नक़्श-ए-पा मिल जाए मुझ को
वहीं का'बा बनाना चाहता हूँ
न पूछ ऐ 'दर्द' मेरी वुसअ'त-ए-शौक़
हुदूद-ए-ग़म बढ़ाना चाहता हूँ
60147 viewsghazal • Hindi