मुसलसल इक मशक़्क़त बे-सबब है
By ezaz-kazmiOctober 29, 2020
मुसलसल इक मशक़्क़त बे-सबब है
मोहब्बत भी बहुत मेहनत-तलब है
तुम्हारा ग़म है रिश्ता-दार मेरा
तुम्हारी याद ही मेरा नसब है
तुम आ जाते तो अच्छा था मगर अब
मिरे दिल में यही इक आस कब है
यूँही आते नहीं अहवाल तकने
वो आए हैं तो फिर कोई सबब है
मिरे दालान में गंजीना-ए-याद
मुरव्वत आश्ती उफ़्ताद सब है
मैं रौशन हूँ तिरे परतव के बाइ'स
मिरे चेहरे पे तेरी ताब-ओ-तब है
क़यामत की घड़ी गुज़री है और तू
अभी मौजूद-ओ-ज़िंदा है अजब है
मोहब्बत भी बहुत मेहनत-तलब है
तुम्हारा ग़म है रिश्ता-दार मेरा
तुम्हारी याद ही मेरा नसब है
तुम आ जाते तो अच्छा था मगर अब
मिरे दिल में यही इक आस कब है
यूँही आते नहीं अहवाल तकने
वो आए हैं तो फिर कोई सबब है
मिरे दालान में गंजीना-ए-याद
मुरव्वत आश्ती उफ़्ताद सब है
मैं रौशन हूँ तिरे परतव के बाइ'स
मिरे चेहरे पे तेरी ताब-ओ-तब है
क़यामत की घड़ी गुज़री है और तू
अभी मौजूद-ओ-ज़िंदा है अजब है
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