मुसलसल ख़ौफ़ है अब तो कहीं ऐसा न हो जाए
By abdullah-khalidAugust 19, 2023
मुसलसल ख़ौफ़ है अब तो कहीं ऐसा न हो जाए
मिरी अर्ज़-ए-वतन मेरे लिए बर्मा न हो जाए
चले इक दौर ऐसा भी सर-ए-मय-ख़ाना-ए-हस्ती
जुनूँ बन जाए सहबा और ख़िरद पैमाना हो जाए
दवा भी देते रहते हैं लगा देते हैं चरका भी
ग़रज़ ये है मरीज़-ए-ग़म कहीं अच्छा न हो जाए
मिरे सब्र-ओ-तहम्मुल को हँसी में टालने वाले
किसी दिन मेरी ख़ामोशी सुख़न-आसा न हो जाए
घुटन हद-दर्जा बेहतर है नई सरकश हवाओं से
ज़रा साबित-क़दम रहना दरीचा वा न हो जाए
मिरी अर्ज़-ए-वतन मेरे लिए बर्मा न हो जाए
चले इक दौर ऐसा भी सर-ए-मय-ख़ाना-ए-हस्ती
जुनूँ बन जाए सहबा और ख़िरद पैमाना हो जाए
दवा भी देते रहते हैं लगा देते हैं चरका भी
ग़रज़ ये है मरीज़-ए-ग़म कहीं अच्छा न हो जाए
मिरे सब्र-ओ-तहम्मुल को हँसी में टालने वाले
किसी दिन मेरी ख़ामोशी सुख़न-आसा न हो जाए
घुटन हद-दर्जा बेहतर है नई सरकश हवाओं से
ज़रा साबित-क़दम रहना दरीचा वा न हो जाए
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