मुतमइन भी किस क़दर थे अपनी क़ुर्बानी से हम

By ahmed-rais-nizamiMay 26, 2024
मुतमइन भी किस क़दर थे अपनी क़ुर्बानी से हम
रद किए जाने लगे अब कितनी आसानी से हम
आँसुओं की आग ने सूरज बना डाला हमें
बुझ नहीं सकते समंदर अब तिरे पानी से हम


इतनी 'आदत पड़ चुकी मुश्किल-पसंदी की हमें
ख़ुद से भी अब मिल नहीं पाते हैं आसानी से हम
ज़िंदगी को देखने की आरज़ू में यूँ हुआ
आइने को देखते रहते हैं हैरानी से हम


आज हम उतरे हुए दरिया से डरते हैं 'रईस'
खेलते थे कल तलक मौजों की तुग़्यानी से हम
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