न किसी हिर्स न हवस के लिए
By qamar-malalFebruary 28, 2024
न किसी हिर्स न हवस के लिए
हम यहाँ आए अहल-ए-लस के लिए
मुझ पे बस इक निगह कि काफ़ी है
एक चिंगारी ख़ार-ओ-ख़स के लिए
ज़िंदगानी के ख़स्ता अड्डे पर
हम खड़े हैं अजल की बस के लिए
रज़्म बज़्म-ए-सुख़न को समझो तो
तन्हा काफ़ी हूँ आठ दस के लिए
दोस्तों ने तिरे बिछड़ने पर
मिरी बर्बादियों के चसके लिए
फिर बहारों ने रास्ता रोका
घर से निकले थे हम क़फ़स के लिए
'इश्क़ का खेल खेलते हैं लोग
नर्म जिस्मों पे दस्तरस के लिए
नाज़ क्या ऐ 'क़मर' जवानी पर
ये तो होती है कुछ बरस के लिए
हम यहाँ आए अहल-ए-लस के लिए
मुझ पे बस इक निगह कि काफ़ी है
एक चिंगारी ख़ार-ओ-ख़स के लिए
ज़िंदगानी के ख़स्ता अड्डे पर
हम खड़े हैं अजल की बस के लिए
रज़्म बज़्म-ए-सुख़न को समझो तो
तन्हा काफ़ी हूँ आठ दस के लिए
दोस्तों ने तिरे बिछड़ने पर
मिरी बर्बादियों के चसके लिए
फिर बहारों ने रास्ता रोका
घर से निकले थे हम क़फ़स के लिए
'इश्क़ का खेल खेलते हैं लोग
नर्म जिस्मों पे दस्तरस के लिए
नाज़ क्या ऐ 'क़मर' जवानी पर
ये तो होती है कुछ बरस के लिए
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