न सय्यद में न मिर्ज़ा में न अंसारी में रक्खी है बशर की शख़्सियत उस की समझदारी में रक्खी है मैं घर आ कर ज़माने की थकन सब भूल जाता हूँ अजब राहत मिरी बच्ची की किलकारी में रक्खी है कभी ग़ैरों पे उँगली मत उठा ऐ रहबरान-ए-मुल्क तबाही देश की अपनों की ग़द्दारी में रक्खी है ग़रीबी का गिला करके तू अपनी क़द्र मत खोना बका-ए-अज़्मत-ए-नादार ख़ुद्दारी में रक्खी है बदन जल जाएगा 'मज़हर' इन्हें छूने की हसरत में ग़ज़ब की आग इन फूलों की चिंगारी में रखी है