न थी हरगिज़ मिरी परवाह दिल को
By nazar-dwivediFebruary 27, 2024
न थी हरगिज़ मिरी परवाह दिल को
मिली मुझ से न थी तनख़्वाह दिल को
फिसल कर सर अब अपना धुन रहा है
किया मैं ने तो था आगाह दिल को
इन आँखों को तो कोई भी दिखा दे
दिखाए कौन लेकिन राह दिल को
बिखर कर जब हुआ नाकाम ख़ुद ही
मोहब्बत की मिली तब थाह दिल को
न होता दिल का मेरे शे'र ख़ारिज
तिरी मिलती अगर इस्लाह दिल को
ज़माने ने मुझे भटका दिया था
किया किस ने मगर गुमराह दिल को
सज़ा मेरे गुनाहों की मुझे दो
न दो लेकिन सज़ा लिल्लाह दिल को
मिली मुझ से न थी तनख़्वाह दिल को
फिसल कर सर अब अपना धुन रहा है
किया मैं ने तो था आगाह दिल को
इन आँखों को तो कोई भी दिखा दे
दिखाए कौन लेकिन राह दिल को
बिखर कर जब हुआ नाकाम ख़ुद ही
मोहब्बत की मिली तब थाह दिल को
न होता दिल का मेरे शे'र ख़ारिज
तिरी मिलती अगर इस्लाह दिल को
ज़माने ने मुझे भटका दिया था
किया किस ने मगर गुमराह दिल को
सज़ा मेरे गुनाहों की मुझे दो
न दो लेकिन सज़ा लिल्लाह दिल को
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