नाम सुनता हूँ तिरा जब भरे संसार के बीच लफ़्ज़ रुक जाते हैं आ कर मिरी गुफ़्तार के बीच एक ही चेहरा किताबी नज़र आता है हमें कभी अशआ'र के बाहर कभी अशआ'र के बीच एक दिल टूटा मगर कितनी नक़ाबें पलटीं जीत के पहलू निकल आए कई हार के बीच कोई महफ़िल हो नज़र उस की हमीं पर ठहरी कभी अपनों में सताया कभी अग़्यार के बीच ऐसे ज़ाहिद की क़यादत में तो तौबा तौबा कभी ईमान की बातें कभी कुफ़्फ़ार के बीच कभी तहज़ीब-ओ-तमद्दुन का ये मरकज़ था मियाँ तुम को बस्ती जो नज़र आती है आसार के बीच जिस तरह टाट का पैवंद हो मख़मल में 'अदील' मग़रिबी चाल-चलन मशरिक़ी अक़दार के बीच