नहीं है यूँ कि फ़क़त रात ही नहीं कटनी
By qamar-malalFebruary 28, 2024
नहीं है यूँ कि फ़क़त रात ही नहीं कटनी
तिरे बग़ैर तो ये ज़िंदगी नहीं कटनी
ख़ुशी के दिन तो गुज़रने हैं चंद लम्हों में
घड़ी कोई भी मगर दुख-भरी नहीं कटनी
बनेगी बात चराग़-ए-ख़ुदी के जलने से
पराई आग से ये तीरगी नहीं कटनी
है बे-ख़ुदी से 'इबारत ये ज़िंदगी ऐ दोस्त
बग़ैर साग़र ओ बे-शा'इरी नहीं कटनी
रहेगी उस के पलटने की आरज़ू जब तक
क़मर 'मलाल' तिरी बे-कली नहीं कटनी
तिरे बग़ैर तो ये ज़िंदगी नहीं कटनी
ख़ुशी के दिन तो गुज़रने हैं चंद लम्हों में
घड़ी कोई भी मगर दुख-भरी नहीं कटनी
बनेगी बात चराग़-ए-ख़ुदी के जलने से
पराई आग से ये तीरगी नहीं कटनी
है बे-ख़ुदी से 'इबारत ये ज़िंदगी ऐ दोस्त
बग़ैर साग़र ओ बे-शा'इरी नहीं कटनी
रहेगी उस के पलटने की आरज़ू जब तक
क़मर 'मलाल' तिरी बे-कली नहीं कटनी
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