नहीं पाई झलक भी दिलरुबा की

By shariq-kaifiFebruary 29, 2024
नहीं पाई झलक भी दिलरुबा की
'अजब वीरान महफ़िल थी ख़ुदा की
गिने जाते नहीं दिन-रात हम से
सुहूलत दो हमें लम्बी सज़ा की


वो घर पहले से अच्छा बन गया है
मगर दहशत नहीं जाती घटा की
अभी देखी है खिड़की खोल के नब्ज़
बला की तेज़ धड़कन है हवा की


तिरा होना ही काफ़ी है शिफ़ा को
ज़रूरत अब नहीं हम को दवा की
42200 viewsghazalHindi