नहीं था कोई सितारा तिरे बराबर भी हुआ ग़ुरूब तिरे साथ तेरा मंज़र भी पिघलते देख रहे थे ज़मीं पे शोले को रवाँ था आँख से अश्कों का इक समुंदर भी कहीं वो लफ़्ज़ में ज़िंदा कहीं वो यादों में वो बुझ चुका है मगर है अभी मुनव्वर भी अजब घुलावटें शहद-ओ-नमक की नुत्क़ में थी वही सुख़न कि था मरहम भी और नश्तर भी मुनाफ़िक़ों की बड़ी फ़ौज उस से डरती थी और उस के पास न था कोई लाव-लश्कर भी