नाशाद था नाशाद है मा'लूम नहीं क्यों

By abdul-majeed-dard-bhopaliApril 24, 2024
नाशाद था नाशाद है मा'लूम नहीं क्यों
दिल 'इश्क़ में बर्बाद है मा'लूम नहीं क्यों
देखा था कभी ख़्वाब-ए-हसीं मैं ने भी ऐ दोस्त
इतना तो मुझे याद है मा'लूम नहीं क्यों


बाक़ी है अभी तूल-ए-शब-ए-हिज्र का 'आलम
दिल शाम से नाशाद है मा'लूम नहीं क्यों
बर्बाद हुआ जिस के तग़ाफ़ुल से मिरा दिल
दिल में वही आबाद है मा'लूम नहीं क्यों


हर चंद कि दिल कुश्ता-ए-बेदाद है लेकिन
नाला है न फ़रियाद है मा'लूम नहीं क्यों
जो सब के लिए लुत्फ़-ओ-'इनायत का है पैकर
मेरे लिए जल्लाद है मा'लूम नहीं क्यों


मैं भी कहीं आबाद था ये याद नहीं है
मुझ में कोई आबाद है मा'लूम नहीं क्यों
ऐ 'दर्द' क़फ़स में बहुत आराम है लेकिन
गुलशन की फ़ज़ा याद है मा'लूम नहीं क्यों


99756 viewsghazalHindi