नश्शा कुछ ऐसा था कि समझ में न आई बात
By jamal-ehsaniFebruary 26, 2024
नश्शा कुछ ऐसा था कि समझ में न आई बात
जब एक रोज़ बज़्म में उस ने उठाई बात
ये काएनात वर्ना कभी की तमाम थी
दो चार लोग थे कि जिन्हों ने बनाई बात
इक बात थी जो मैं ने कही थी ब-सद-नियाज़
लेकिन ये मेरी बात में किस ने मिलाई बात
दुनिया जहाँ का ज़िक्र किया रात-भर मगर
इक दूसरे से दोनों ने दिल की छुपाई बात
ये सारा बाग़ उस के रवय्ये से तंग है
उस गुल ही ने बढ़ाई है जब भी बढ़ाई बात
मैं ने कहा ज़ियादा है मुझ को दिमाग़ कुछ
उस ने चमन में जा के सबा से लगाई बात
चाहे 'जमाल' दूसरे ही की ज़मीन हो
हम ने तो जब सुनाई है अपनी सुनाई बात
जब एक रोज़ बज़्म में उस ने उठाई बात
ये काएनात वर्ना कभी की तमाम थी
दो चार लोग थे कि जिन्हों ने बनाई बात
इक बात थी जो मैं ने कही थी ब-सद-नियाज़
लेकिन ये मेरी बात में किस ने मिलाई बात
दुनिया जहाँ का ज़िक्र किया रात-भर मगर
इक दूसरे से दोनों ने दिल की छुपाई बात
ये सारा बाग़ उस के रवय्ये से तंग है
उस गुल ही ने बढ़ाई है जब भी बढ़ाई बात
मैं ने कहा ज़ियादा है मुझ को दिमाग़ कुछ
उस ने चमन में जा के सबा से लगाई बात
चाहे 'जमाल' दूसरे ही की ज़मीन हो
हम ने तो जब सुनाई है अपनी सुनाई बात
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