नज़र तो आस की अब अहल-ए-आसमान पे है
By abhay-kumar-bebakMay 19, 2024
नज़र तो आस की अब अहल-ए-आसमान पे है
दु'आ का तीर 'अबस अज्र की कमान पे है
ज़मीं नसीब कहाँ दूर के सफ़र से उसे
वो एक धूप का टुकड़ा जो साएबान पे है
जिसे जतन से रक्खा दिल ही दिल में वक़्त-ए-जुनूँ
वो राज़ शहर में हर एक की ज़बान पे है
तमाम शौक़ धरे के धरे न रह जाएँ
जुनूँ के शहर में आफ़त हमारी जान पे है
सफ़र में चैन कहाँ दौर-ए-आबला-पाई
जो हाल उठान पे था अब वही ढलान पे है
शिकार में हैं यहाँ एक दूसरे के सभी
कभी ज़मीं पे कभी आदमी मचान पे है
कोई तो काट बता मुझ को तू मिरे माज़ी
कि अब के वार तिरी आन बान शान पे है
वो शाख़-ए-ज़ीस्त पे 'बेबाक' लौटता ही नहीं
परिंद दिल का जो अब 'अर्श की उड़ान पे है
दु'आ का तीर 'अबस अज्र की कमान पे है
ज़मीं नसीब कहाँ दूर के सफ़र से उसे
वो एक धूप का टुकड़ा जो साएबान पे है
जिसे जतन से रक्खा दिल ही दिल में वक़्त-ए-जुनूँ
वो राज़ शहर में हर एक की ज़बान पे है
तमाम शौक़ धरे के धरे न रह जाएँ
जुनूँ के शहर में आफ़त हमारी जान पे है
सफ़र में चैन कहाँ दौर-ए-आबला-पाई
जो हाल उठान पे था अब वही ढलान पे है
शिकार में हैं यहाँ एक दूसरे के सभी
कभी ज़मीं पे कभी आदमी मचान पे है
कोई तो काट बता मुझ को तू मिरे माज़ी
कि अब के वार तिरी आन बान शान पे है
वो शाख़-ए-ज़ीस्त पे 'बेबाक' लौटता ही नहीं
परिंद दिल का जो अब 'अर्श की उड़ान पे है
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