निगार-ए-हुस्न को हद से फ़रावाँ कौन देखेगा

By bishan-dayal-shad-dehlviFebruary 26, 2024
निगार-ए-हुस्न को हद से फ़रावाँ कौन देखेगा
निगाह-ए-शौक़ को अपनी परेशाँ कौन देखेगा
सनम-ख़ाने में शक्ल-ए-ज़ब्त-ए-अरमाँ कौन देखेगा
तुम्हारे सामने तस्वीर-ए-बे-जाँ कौन देखेगा


न देखूँ मैं तो हुस्न-ए-'इश्क़-सामाँ कौन देखेगा
सुकूँ की जुस्तुजू में नब्ज़-ए-तूफ़ाँ कौन देखेगा
कहेगा कौन इन को जान-ए-जानाँ कौन देखेगा
न होंगे बाम से जब तक नुमायाँ कौन देखेगा


ब-नुत्क़-ए-सोज़-ए-बाक़ी कह रही है ख़ाक-ए-परवाना
नसीब-ए-शम' अब अंदाज़-ए-सोज़ाँ कौन देखेगा
शु'ऊर-ए-पर्दा-दारी दर-हक़ीक़त जान रखता है
सर-ए-महफ़िल उन्हें बा-शर्त-ए-ईमाँ कौन देखेगा


जहाँ रंगीनी-ए-हूर-ओ-तहूरा सर-बसर होगी
वहाँ ग़म्माज़ी-ए-ख़ुश्की-ए-ईमाँ कौन देखेगा
ग़म-ए-हस्ती का मातम ही अगर मद्द-ए-नज़र होगा
ज़रा सा होश से ले लूंगा एहसाँ कौन देखेगा


दिए रौशन किए हैं आज मेहराब-ए-तमन्ना पर
जो तुम देखो न देखो ये चराग़ाँ कौन देखेगा
क़ियाम-ए-मुस्तक़िल दिल में नहीं शायान-ए-शाँ ताहम
बराए-नाम ही हो जाओ मेहमाँ कौन देखेगा


मज़ाक़-ए-'शाद' की निगराँ रहे चश्म-ए-करम वर्ना
निगाह-ए-दिल को यकसर नक़्श-ए-हैराँ कौन देखेगा
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