नींद आ जाए तो लम्हात में मर जाते हैं दिन से बच निकले बदन रात में मर जाते हैं करते हैं अपनी ज़बाँ से जो दिलों को ज़ख़्मी दब के इक दिन वो इसी बात में मर जाते हैं याद आती है तेरी जब भी गुलाबी बातें डूब कर तेरे ख़यालात में मर जाता हूँ जब कभी जाते हैं अहबाब की शादी में हम जानें क्यूँ जाते ही सदमात में मर जाते हैं लड़ने की ताब तो मिट्टी के मकानों में है काँच-घर मौसम-ए-बरसात में मर जाते हैं तब कोई डूब के पानी में फ़ना होता है ख़्वाब जब तल्ख़ी-ए-हालात में मर जाते हैं जब हवा बाग़ से कहती है ख़िज़ाँ आई है बाग़बाँ फूल लिए हात में मर जाते हैं