पागल सी हवा ढलती हुई शाम समुंदर
By ghayas-mateenSeptember 3, 2022
पागल सी हवा ढलती हुई शाम समुंदर
ऐसे ही कहीं ले न तिरा नाम समुंदर
वीरानों में भटकें कि तिरे शहर में ठहरें
आँखों में दर आता है सर-ए-शाम समुंदर
है ताज़ा हवाओं पे ये इल्ज़ाम कि चुप हैं
कुछ ऐसा ही तुझ पर भी है इल्ज़ाम समुंदर
काग़ज़ की बनी नाव में बैठे हुए हम लोग
गिर्दाब से निकले हैं ज़रा थाम समुंदर
दे इज़्न कि पानी पे मकाँ अपने बनाएँ
अब सारी ज़मीं हो गई नीलाम समुंदर
सुनते हैं वहाँ अक्स उभरते हैं बदन के
चलते हैं चलो हम भी सर-ए-शाम समुंदर
किस वक़्त ज़मीं मेरे क़दम लेने लगी है
जब रह गया मिट्टी से बस इक गाम समुंदर
तू अक्स-ए-फ़लक है तो फ़लक आइना तेरा
इक रक़्स-ए-मुसलसल है तिरा काम समुंदर
चढ़ते हुए दरिया हों कि सूखी हुई नहरें
रखते हैं तिरे सर सभी इल्ज़ाम समुंदर
क्या भर गए पानी से लबालब कि 'मतीन' आज
देने लगे सहराओं को दुश्नाम समुंदर
ऐसे ही कहीं ले न तिरा नाम समुंदर
वीरानों में भटकें कि तिरे शहर में ठहरें
आँखों में दर आता है सर-ए-शाम समुंदर
है ताज़ा हवाओं पे ये इल्ज़ाम कि चुप हैं
कुछ ऐसा ही तुझ पर भी है इल्ज़ाम समुंदर
काग़ज़ की बनी नाव में बैठे हुए हम लोग
गिर्दाब से निकले हैं ज़रा थाम समुंदर
दे इज़्न कि पानी पे मकाँ अपने बनाएँ
अब सारी ज़मीं हो गई नीलाम समुंदर
सुनते हैं वहाँ अक्स उभरते हैं बदन के
चलते हैं चलो हम भी सर-ए-शाम समुंदर
किस वक़्त ज़मीं मेरे क़दम लेने लगी है
जब रह गया मिट्टी से बस इक गाम समुंदर
तू अक्स-ए-फ़लक है तो फ़लक आइना तेरा
इक रक़्स-ए-मुसलसल है तिरा काम समुंदर
चढ़ते हुए दरिया हों कि सूखी हुई नहरें
रखते हैं तिरे सर सभी इल्ज़ाम समुंदर
क्या भर गए पानी से लबालब कि 'मतीन' आज
देने लगे सहराओं को दुश्नाम समुंदर
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