पहले जो था वही है हाल मियाँ इश्क़ को है कहाँ ज़वाल मियाँ एक दिल ही नहीं बहुत कुछ है जिस के लुटने का है मलाल मियाँ रज़्म-गाह-ए-हयात में क्या क्या काम आई है ग़म की ढाल मियाँ आदमी वक़्त की जबीं पर है आज सब से बड़ा सवाल मियाँ दिल हलाक-ए-ग़म-ए-ज़माना हुआ पड़ गया आइने में बाल मियाँ क़ैस-ओ-फ़रहाद से न दो तश्बीह आप अपनी हूँ मैं मिसाल मियाँ इक यही रौश्नी-ए-तब्अ' तो है मेरी पूँजी मिरी मनाल मियाँ इस ग़म-ए-ज़ीस्त के तलातुम में क्या फ़िराक़ और क्या विसाल मियाँ कब हुआ हम से बे-कुलाहों का कज-कुलाहों से इत्तिसाल मियाँ हम क़लंदर हैं हम से मत उलझो आ गया गर कहीं जलाल मियाँ सच है 'जाबिर' का दम ग़नीमत है अब कहाँ ऐसे ख़ुश-मक़ाल मियाँ