पराई आग में जलने की आरज़ू है वही बदल गया है मगर वहशतों की ख़ू है वही वो शहर छोड़ के मुद्दत हुई चला भी गया हद-ए-उफ़ुक़ पे मगर चाँद रू-ब-रू है वही ज़माना लाख सितारों को छू के आ जाए अभी दिलों को मगर हाजत-ए-रफ़ू है वही क़रीब था तो सभी उस से बे-ख़बर थे मगर चला गया है तो मौज़ू-ए-गुफ़्तुगू है वही