पत्थरों की क़ैद में इक आबजू
By wazir-aghaOctober 6, 2023
पत्थरों की क़ैद में इक आबजू
बे-कराँ नीला समुंदर चार सू
रेज़ा रेज़ा हो गया हूँ मैं अगर
चूर वो भी हो चुका है मू-ब-मू
याद का बे-नाम सा अब लम्स और
मेरे अंदर मुश्क-बू ही मुश्क-बू
ओढ़ लें अब रात की ठंडक तमाम
है इसी में तेरी मेरी आबरू
कौन था जिस ने मुझे तन्हा किया
छीन कर मुझ से तुम्हारी आरज़ू
क्या नज़र आया है तुझ को अब्र में
क्यों हुआ है इस क़दर बीमार तू
फूल की रेखा में उस ने देख कर
खींच दी तस्वीर मेरी हू-ब-हू
फूल ख़ुशबू रंग काग़ज़ और मैं
हो रही है बे-सदा इक गुफ़्तुगू
अक्स-अंदर-अक्स मैं आऊँ नज़र
तू अगर आ जाए मेरे रू-ब-रू
बे-कराँ नीला समुंदर चार सू
रेज़ा रेज़ा हो गया हूँ मैं अगर
चूर वो भी हो चुका है मू-ब-मू
याद का बे-नाम सा अब लम्स और
मेरे अंदर मुश्क-बू ही मुश्क-बू
ओढ़ लें अब रात की ठंडक तमाम
है इसी में तेरी मेरी आबरू
कौन था जिस ने मुझे तन्हा किया
छीन कर मुझ से तुम्हारी आरज़ू
क्या नज़र आया है तुझ को अब्र में
क्यों हुआ है इस क़दर बीमार तू
फूल की रेखा में उस ने देख कर
खींच दी तस्वीर मेरी हू-ब-हू
फूल ख़ुशबू रंग काग़ज़ और मैं
हो रही है बे-सदा इक गुफ़्तुगू
अक्स-अंदर-अक्स मैं आऊँ नज़र
तू अगर आ जाए मेरे रू-ब-रू
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