पेश-ए-ज़मीं रहूँ कि पस-ए-आसमाँ रहूँ रहता हूँ अपने साथ मैं चाहे जहाँ रहूँ कैसा जहाँ कहाँ का मकाँ कौन ला-मकाँ यानी अगर कहीं न रहूँ तो कहाँ रहूँ ऐ इश्क़ मेरा होना न होना है मुझ तलक अब मैं निशान खींचूँ कि मैं बे-निशाँ रहूँ क्या ढूँढता रहूँ मैं यूँही दहर में सबात क्या मर्ग-ए-ना-गहाँ के लिए ना-गहाँ रहूँ ख़ाकिस्तर-ए-सितारा है आइंदा-ए-नुमू बेहतर यही है मैं किसी जानिब रवाँ रहूँ