फिर से हम पड़ गए मोहब्बत में
By shariq-kaifiFebruary 29, 2024
फिर से हम पड़ गए मोहब्बत में
तुझ को रोना नहीं था क़िस्मत में
वो जो संजीदगी से कहना था
वो तो हम कह चुके शरारत में
होश में कब हमारे बस के थे
काम निमटा लिए जो वहशत में
इक पुरानी नमाज़ याद आई
और ख़लल पड़ गया 'इबादत में
रोज़ मेरे लिए क़यामत थी
रोज़ टलती हुई क़यामत में
बस वही माँगने नहीं आते
जिन का हिस्सा है मेरी दौलत में
याद रखना गुनाहगार हो तुम
मुस्कुराना नहीं 'अदालत में
आख़िरी जाम ने बिगाड़ी बात
बस नहीं कह सके मुरव्वत में
मुस्कुरा कर विदा' करता हूँ
ये भी अब आ गया है 'आदत में
तुझ को रोना नहीं था क़िस्मत में
वो जो संजीदगी से कहना था
वो तो हम कह चुके शरारत में
होश में कब हमारे बस के थे
काम निमटा लिए जो वहशत में
इक पुरानी नमाज़ याद आई
और ख़लल पड़ गया 'इबादत में
रोज़ मेरे लिए क़यामत थी
रोज़ टलती हुई क़यामत में
बस वही माँगने नहीं आते
जिन का हिस्सा है मेरी दौलत में
याद रखना गुनाहगार हो तुम
मुस्कुराना नहीं 'अदालत में
आख़िरी जाम ने बिगाड़ी बात
बस नहीं कह सके मुरव्वत में
मुस्कुरा कर विदा' करता हूँ
ये भी अब आ गया है 'आदत में
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