प्यार में पाकीज़गी थी वो ज़माना और था
By bhagwan-khilnani-saqiFebruary 26, 2024
प्यार में पाकीज़गी थी वो ज़माना और था
जब मोहब्बत ज़िंदगी थी वो ज़माना और था
हर बशर को ग़म उठाने में मज़ा आता था जब
ग़म में भी इक ताज़गी थी वो ज़माना और था
जाम पर हम जाम पीते थे शराब-ए-नाब के
इक मुसलसल तिश्नगी थी वो ज़माना और था
घूमते थे हम बयाबानों में गुलशन की तरह
क्या हसीं आवारगी थी वो ज़माना और था
जुस्तुजू-ए-'इश्क़ में रहता था सरगर्दां बहुत
हुस्न में जब सादगी थी वो ज़माना और था
लुत्फ़ था 'साक़ी' हमारी ज़िंदगी में जिन दिनों
मौत भी इक ज़िंदगी थी वो ज़माना और था
जब मोहब्बत ज़िंदगी थी वो ज़माना और था
हर बशर को ग़म उठाने में मज़ा आता था जब
ग़म में भी इक ताज़गी थी वो ज़माना और था
जाम पर हम जाम पीते थे शराब-ए-नाब के
इक मुसलसल तिश्नगी थी वो ज़माना और था
घूमते थे हम बयाबानों में गुलशन की तरह
क्या हसीं आवारगी थी वो ज़माना और था
जुस्तुजू-ए-'इश्क़ में रहता था सरगर्दां बहुत
हुस्न में जब सादगी थी वो ज़माना और था
लुत्फ़ था 'साक़ी' हमारी ज़िंदगी में जिन दिनों
मौत भी इक ज़िंदगी थी वो ज़माना और था
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