क़लम को ख़ून में ग़र्क़ाब देखते जाओ
By abida-karamatMay 19, 2024
क़लम को ख़ून में ग़र्क़ाब देखते जाओ
ज़मीन-ए-शेर को शादाब देखते जाओ
निगाह होते हुए सैल-ए-ख़ूँ पे चुप रहना
हमारे शहर के आदाब देखते जाओ
पहुँच गई है सर-ए-अर्श उन की ख़ामोशी
कि कुश्तगाँ को ज़फ़र-याब देखते जाओ
सजाए माथे पे अपनी तमाम ता'बीरें
हमारी आँख के सब ख़्वाब देखते जाओ
सुलग रहा है कोई और जल रहा है कोई
घरों की ये भी तब-ओ-ताब देखते जाओ
हर एक क़ब्र पे लिक्खा हुआ है नाम यहाँ
हमारे मिम्बर-ओ-मेहराब देखते जाओ
ग़रज़ के सैंकड़ों बाज़ार खुल गए लेकिन
ख़ुलूस हो गया नायाब देखते जाओ
ज़मीन-ए-शेर को शादाब देखते जाओ
निगाह होते हुए सैल-ए-ख़ूँ पे चुप रहना
हमारे शहर के आदाब देखते जाओ
पहुँच गई है सर-ए-अर्श उन की ख़ामोशी
कि कुश्तगाँ को ज़फ़र-याब देखते जाओ
सजाए माथे पे अपनी तमाम ता'बीरें
हमारी आँख के सब ख़्वाब देखते जाओ
सुलग रहा है कोई और जल रहा है कोई
घरों की ये भी तब-ओ-ताब देखते जाओ
हर एक क़ब्र पे लिक्खा हुआ है नाम यहाँ
हमारे मिम्बर-ओ-मेहराब देखते जाओ
ग़रज़ के सैंकड़ों बाज़ार खुल गए लेकिन
ख़ुलूस हो गया नायाब देखते जाओ
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