रात आती है तो बाज़ार से लग जाते हैं

By aftab-ranjhaMay 22, 2024
रात आती है तो बाज़ार से लग जाते हैं
दर्द ही दर्द के अम्बार से लग जाते हैं
चलते ही रहते हैं हम पर तो क़ज़ा के नश्तर
हम भी रोते हुए दीवार से लग जाते हैं


ऐसे तन्हाई रग-ए-जाँ से लिपट कर रोए
जैसे ख़ल्वत में गले यार से लग जाते हैं
'आलम-ए-शौक़ किनारों की किसे फ़ुर्सत है
ये सफ़ीने कभी मंझदार से लग जाते हैं


ज़िंदगी तू भी तमाशे के सिवा कुछ भी नहीं
देखते देखते आज़ार से लग जाते हैं
चाँदनी रात में बैठे हुए तन्हा 'बरहम'
गुम-शुदा यादों के दरबार से लग जाते हैं


81802 viewsghazalHindi