रब्त में पहलू-ए-नैरंग कहाँ से आया साहब-ए-अर्ज़ को ये ढंग कहाँ से आया ख़ुशनुमा अक्स हुए ख़ार की सूरत कैसे आइने सब थे तो फिर संग कहाँ से आया गर्द की ज़द में है ख़ुश्बू से महकता आँगन ख़्वाब में दहर का आहंग कहाँ से आया सब्ज़ है वादी-ए-बे-आब में गुलशन मेरा शब की तस्वीर में ये रंग कहाँ से आया दोस्त दुश्मन हैं सभी वज़्अ पे क़ाएम 'राहत' क्या कहूँ जीत के मैं जंग कहाँ से आया