रह-ए-जुनूँ जो निशान-ए-क़दम इकट्ठा थे
By asim-qamarFebruary 25, 2024
रह-ए-जुनूँ जो निशान-ए-क़दम इकट्ठा थे
वो हम नहीं थे वजूद-ओ-‘अदम इकट्ठा थे
हयात अस्ल म'आनी में खुल के आई थी
इस एक साल में सारे जनम इकट्ठा थे
यहाँ मैं अपनी उदासी बिताने आऊँगा
किसी दरख़्त पे लिख दो के हम इकट्ठा थे
शब-ए-फ़िराक़ थी और मैं ख़ुदा से ग़ुस्सा था
फ़लक पे सारे नुजूम एक दम इकट्ठा थे
तिरी छुअन से रवाँ हो गए हैं बरजस्ता
हज़ारों सैल-ए-तमन्ना के नम इकट्ठा थे
तुम्हारा हिज्र बहाना बना है पिछलों का
ये मुझ पे आज खुला इतने ग़म इकट्ठा थे
हमारा ज़ेहन भी मस्जिद के सहन जैसा रहा
जगह बहुत थी मगर लोग कम इकट्ठा थे
वो हम नहीं थे वजूद-ओ-‘अदम इकट्ठा थे
हयात अस्ल म'आनी में खुल के आई थी
इस एक साल में सारे जनम इकट्ठा थे
यहाँ मैं अपनी उदासी बिताने आऊँगा
किसी दरख़्त पे लिख दो के हम इकट्ठा थे
शब-ए-फ़िराक़ थी और मैं ख़ुदा से ग़ुस्सा था
फ़लक पे सारे नुजूम एक दम इकट्ठा थे
तिरी छुअन से रवाँ हो गए हैं बरजस्ता
हज़ारों सैल-ए-तमन्ना के नम इकट्ठा थे
तुम्हारा हिज्र बहाना बना है पिछलों का
ये मुझ पे आज खुला इतने ग़म इकट्ठा थे
हमारा ज़ेहन भी मस्जिद के सहन जैसा रहा
जगह बहुत थी मगर लोग कम इकट्ठा थे
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