राह-ए-सफ़र में गर्द कभी है कभी नहीं

By rahat-hasanNovember 13, 2020
राह-ए-सफ़र में गर्द कभी है कभी नहीं
दिल मुब्तला-ए-दर्द कभी है कभी नहीं
हैराँ किए हैं ख़ल्क़ को जादू की बस्तियाँ
नाम-ओ-निशान-ए-फ़र्द कभी है कभी नहीं


ख़ूँ की सफ़ेदियों का नज़ारा है मुस्तक़िल
ज़ोर-ए-हवा-ए-सर्द कभी है कभी नहीं
ये कैसे हादसात की सूरत है शहर में
चेहरों का रंग ज़र्द कभी है कभी नहीं


नीलाहटों को जिस ने ग़ज़बनाक कर दिया
वो संग-ए-लाजवर्द कभी है कभी नहीं
'राहत' वो अपनी तर्ज़ बदलता है बारहा
लगता मुझे भी मर्द कभी है कभी नहीं


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