रहीन-ए-ख़्वाब हूँ और ख़्वाब के मकाँ में हूँ जहान मुझ से सिवा है मैं जिस जहाँ में हूँ अजब तरह का ख़िरद-ख़ेज़ है जुनूँ मेरा मुझे ख़बर है मैं किस कार-ए-राएगाँ में हूँ तू मुझ को फेंक चुका कब का अपने दुश्मन पर मैं अब कमाँ में नहीं हूँ तिरे गुमाँ में हूँ मिरी थकन भी तिरी हिजरतों में शामिल है मैं गर्द गर्द सही तेरे कारवाँ में हूँ उलझ पड़ा था मैं इक रोज़ अपने साए से और उस के बा'द अकेला ही दास्ताँ में हूँ