रखा है बज़्म में उस ने चराग़ कर के मुझे

By zafar-sahbaiNovember 27, 2020
रखा है बज़्म में उस ने चराग़ कर के मुझे
अभी तो सुनना है अफ़्साने रात भर के मुझे
ये बात तो मिरे ख़्वाब-ओ-ख़याल में भी न थी
सताएँगे दर-ओ-दीवार मेरे घर के मुझे


मैं चाहता था किसी पेड़ का घना साया
दुआएँ धूप ने भेजी हैं सहन भर के मुझे
वो मेरा हाथ तो छोड़ें कि मैं क़दम मोड़ूँ
बुला रहे हैं नए रास्ते सफ़र के मुझे


चराग़ रोए है जगमग किया था जिन का नसीब
वो लोग भूल गए ताक़चे में धर के मुझे
मैं अपने आप में वहशत का इक तमाशा था
हवाएँ फूल बनाती रहीं कतर के मुझे


तमाम अज़्मतें मश्कूक हो गईं जैसे
वो उथला-पन मिला गहराई में उतर के मुझे
दिलों के बीच न दीवार है न सरहद है
दिखाई देते हैं सब फ़ासले नज़र के मुझे


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