रखना हो तो दिल को निगह-ए-यार में रखना
By ali-minaiJune 2, 2024
रखना हो तो दिल को निगह-ए-यार में रखना
इस जिंस-ए-गिरामी को न बाज़ार में रखना
हम अहल-ए-तमन्ना की बस इतनी है करामत
इक ख़्वाब सदा दीदा-ए-बेदार में रखना
अंजाम-ए-तरब भी तो तअस्सुफ़ है सो इस बार
ख़ुशियों को भी तख़्मीना-ए-आज़ार में रखना
अब घर जो बनाना कोई ख़्वाबों की ज़मीं पर
इमकान-तग़य्युर दर-ओ-दीवार में रखना
नाहक़ किसी मज़लूम पर उट्ठे तो लचक जाए
ये जौहर-ए-नायाब भी तलवार में रखना
ये क्या कि हर इक दिल में जगाना तलब-ए-हुस्न
और ख़ुद को निहाँ पर्दा-ए-असरार में रखना
इस जिंस-ए-गिरामी को न बाज़ार में रखना
हम अहल-ए-तमन्ना की बस इतनी है करामत
इक ख़्वाब सदा दीदा-ए-बेदार में रखना
अंजाम-ए-तरब भी तो तअस्सुफ़ है सो इस बार
ख़ुशियों को भी तख़्मीना-ए-आज़ार में रखना
अब घर जो बनाना कोई ख़्वाबों की ज़मीं पर
इमकान-तग़य्युर दर-ओ-दीवार में रखना
नाहक़ किसी मज़लूम पर उट्ठे तो लचक जाए
ये जौहर-ए-नायाब भी तलवार में रखना
ये क्या कि हर इक दिल में जगाना तलब-ए-हुस्न
और ख़ुद को निहाँ पर्दा-ए-असरार में रखना
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