रानाई-ए-हयात हुई कम है इन दिनों

By al-haaj-al-hafizJune 2, 2024
रानाई-ए-हयात हुई कम है इन दिनों
यादश-ब-ख़ैर ज़ीस्त को इक ग़म है इन दिनों
वो दिन गए कि क़तरा-ए-शबनम थी काएनात
दिल अपना अब तो क़तरा-ए-शबनम है इन दिनों


फ़िक्र-ए-बहार है न तो गुलशन की याद है
ले दे के एक तेरा ही बस ग़म है इन दिनों
राह-ए-वफ़ा में ठोकरें खाता जभी तो हूँ
क़िस्मत में अपनी लग़्ज़िश-ए-पैहम है इन दिनों


आँखें चुराता फिरता हूँ हर जल्वा-गाह से
डरता हूँ रौशनी से ये 'आलम है इन दिनों
ऐ वाइज़-ए-हरीस मुबारक तुझे वो ख़ुल्द
मेरी नज़र में ख़ुल्द-ए-दो-आलम है इन दिनों


फ़रमाइश-ए-ख़ुमार पे कैसे कहूँ ग़ज़ल
मश्क़-ए-सुख़न भी देखिए अब कम है इन दिनों
'दीवान' किस ख़ुशी में चले झूमते हुए
क्या फिर किसी से रिश्ता-ए-मोहकम है इन दिनों


74457 viewsghazalHindi