रंग कहते हैं कहानी मेरी

By khalid-ahmadNovember 3, 2020
रंग कहते हैं कहानी मेरी
किस की ख़ुश्बू थी जवानी मेरी
कोई पाए तो मुझे क्या पाए
खोए रहना है निशानी मेरी


कोह से दश्त में ले आई है
दुश्मन-ए-जाँ है रवानी मेरी
खिल रही है पस-ए-दीवार ज़माँ
ख़्वाहिश-ए-नक़्ल-ए-मकानी मेरी


सर-ए-मरक़द हैं सभी साया-कुशा
कोई हसरत नहीं फ़ानी मेरी
तपिश-ए-रंग झुलस डालेगी
क्या करे सोख़्ता-जानी मेरी


नक़्श था मैं भी गली तख़्ती का
उड़ गई ख़ाक-ए-मआनी मेरी
क्या सुख़न-फ़हम नज़र थी जिस ने
बात कोई भी न मानी मेरी


नाक़िदों ने मुझे परखा 'ख़ालिद'
ख़ाक सहराओं ने छानी मेरी
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