रंग लाएगी इल्तिजा मेरी सुन ही लेगा कभी ख़ुदा मेरी ज़ब्त-ए-ग़म को दुआएँ देता हूँ रह गई घुट के हर सदा मेरी उस की बंदा-नवाज़ियाँ देखो बख़्श देता है हर ख़ता मेरी सुनने वालों के दिल तड़प उट्ठे साज़-ए-ग़म बन गई सदा मेरी वस्ल मुमकिन नहीं विसाल सही अब तो कुछ और है दुआ मेरी बे-सहारों का आसरा तू है कौन सुनता तिरे सिवा मेरी ये मशिय्यत के राज़ हैं 'शंकर' इब्तिदा मेरी इंतिहा मेरी