रंग-ओ-ख़याल जो भी है सारा लिए हुए
By tariq-islam-kukraviMarch 1, 2024
रंग-ओ-ख़याल जो भी है सारा लिए हुए
अपनी ग़ज़ल है प्यार का लहजा लिए हुए
उन का भी सामना तो क़यामत से कम नहीं
आए हैं वो हिसाब का परचा लिए हुए
क़िस्मत में ज़िंदगी थी फ़क़त और कुछ नहीं
दरिया वो पार कर गया तिनका लिए हुए
उस के नसब पे जिस को भी शक हो वो देख ले
आया है अपने साथ वो शजरा लिए हुए
शम्स-ओ-क़मर सितारे जहाँ-भर की रौनक़ें
महफ़िल में आ गया है वो क्या क्या लिए हुए
वो इंतिज़ार करता रहा और सो गया
आँखों में तेरी दीद का सपना लिए हुए
'तारिक़' चलो चलें कभी उन के दयार में
कब तक यहाँ फिरोगे तमन्ना लिए हुए
अपनी ग़ज़ल है प्यार का लहजा लिए हुए
उन का भी सामना तो क़यामत से कम नहीं
आए हैं वो हिसाब का परचा लिए हुए
क़िस्मत में ज़िंदगी थी फ़क़त और कुछ नहीं
दरिया वो पार कर गया तिनका लिए हुए
उस के नसब पे जिस को भी शक हो वो देख ले
आया है अपने साथ वो शजरा लिए हुए
शम्स-ओ-क़मर सितारे जहाँ-भर की रौनक़ें
महफ़िल में आ गया है वो क्या क्या लिए हुए
वो इंतिज़ार करता रहा और सो गया
आँखों में तेरी दीद का सपना लिए हुए
'तारिक़' चलो चलें कभी उन के दयार में
कब तक यहाँ फिरोगे तमन्ना लिए हुए
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