रंज राहत-असर न हो जाए

By zaheer-dehlviNovember 27, 2020
रंज राहत-असर न हो जाए
दर्द का दिल में घर न हो जाए
मुँह छुपाना पड़े न दुश्मन से
ऐ शब-ए-ग़म सहर न हो जाए


कुफ़्र मंज़ूर है मुझे दिल से
वो मुसलमान अगर न हो जाए
हाथ उलझा रहे गरेबाँ में
चाक दामन उधर न हो जाए


है 'ज़हीर' एक मर्द-ए-संजीदा
हाँ जो आशुफ़्ता-सर न हो जाए
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