रू-पोश आँख से कोई ख़ुशबू लिबास है गो दूर दूर सा है मगर आस-पास है ये सुन के रेगज़ार के होंटों पे प्यास है दरिया की बे-रुख़ी पे समुंदर उदास है शाम-ए-अवध ने ज़ुल्फ़ में गूँधे नहीं हैं फूल तेरे बग़ैर सुब्ह-ए-बनारस उदास है खाती वगर्ना ठोकरें चाहत कहाँ कहाँ दाता मिरा बड़ा ही तमन्ना-शनास है रहबर बना हुआ है जो साया क़दम क़दम परतव तिरा ही मेरे कहीं आस-पास है यारब हमारे जज़्बा-ए-दीदा-वरी की ख़ैर जो फूल है चमन में वो शबनम लिबास है