रुत्बा-ए-तख़्त से महरूम है मंसब मेरा

By rahat-hasanNovember 13, 2020
रुत्बा-ए-तख़्त से महरूम है मंसब मेरा
साहब-ए-फ़हम समझते नहीं मतलब मेरा
है मिरे शे'र से अहवाल-ए-ज़माना ज़ाहिर
पढ़ लो तुम भी कि ये शीशा है महद्दब मेरा


मेरी बस्ती को उजाले में दिखा कर मुझ को
क़त्ल करता है कोई ख़्वाब में हर शब मेरा
तर्जुमाँ हैं मिरे माहौल की ग़ज़लें मेरी
ये अलग बात कि लहजा है मोहज़्ज़ब मेरा


शहर-ए-क़ाज़ी तिरे फ़तवों से ग़रज़ क्या मुझ को
रब मिरा दिल मिरा मर्ज़ी मिरी मज़हब मेरा
ख़ुश्बू-ए-शे'र से महज़ूज़ हुआ कर 'राहत'
ग़म के बीमार ये नुस्ख़ा है मुजर्रब मेरा


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