सब तरह के हालात को इम्कान में रक्खा

By iftikhar-shafiOctober 31, 2020
सब तरह के हालात को इम्कान में रक्खा
हर लम्हा उसे सोच में विज्दान में रक्खा
हिजरत की घड़ी हम ने तिरे ख़त के अलावा
बोसीदा किताबों को भी सामान में रक्खा


मुझ को मिरी क़ामत के मुताबिक़ भी जगह दी
ये फूल उठा कर कभी गुल-दान में रक्खा?
इक उम्र गुज़ारी नए आहंग से लेकिन
अज्दाद की अक़दार को भी ध्यान में रक्खा


इक रोज़ सियह रात हथेली पे सजा कर
सहरा ने क़दम ख़ित्ता-ए-गुंजान में रक्खा
होंटों को सदा रक्खा तबस्सुम से इबारत
इक ज़हर-बुझा तीर भी मुस्कान में रक्खा


57998 viewsghazalHindi