सभी बिछड़ गए मुझ से गुज़रते पल की तरह
By aftab-shamsiMay 22, 2024
सभी बिछड़ गए मुझ से गुज़रते पल की तरह
मैं गिर चुका हूँ किसी ख़्वाब के महल की तरह
नवाह-ए-जिस्म में रोता-कराहता दिन-रात
मुझे डराता है कोई मिरी अजल की तरह
ये शहर है यहाँ अपनी ही जुस्तुजू में लोग
मिलेंगे चलते हुए चियूँटियों के दिल की तरह
मैं उस से मिलता रहा आज की तवक़्क़ो' पर
वो मुझ से दूर रहा आने वाले कल की तरह
नगर में ज़ेहन के फिर शाम से है सन्नाटा
उदास उदास है दिल 'मीर' की ग़ज़ल की तरह
निढाल देख के बिस्तर में नींद की परियाँ
फिर आज मुझ से ख़फ़ा हो गई हैं कल की तरह
मैं गिर चुका हूँ किसी ख़्वाब के महल की तरह
नवाह-ए-जिस्म में रोता-कराहता दिन-रात
मुझे डराता है कोई मिरी अजल की तरह
ये शहर है यहाँ अपनी ही जुस्तुजू में लोग
मिलेंगे चलते हुए चियूँटियों के दिल की तरह
मैं उस से मिलता रहा आज की तवक़्क़ो' पर
वो मुझ से दूर रहा आने वाले कल की तरह
नगर में ज़ेहन के फिर शाम से है सन्नाटा
उदास उदास है दिल 'मीर' की ग़ज़ल की तरह
निढाल देख के बिस्तर में नींद की परियाँ
फिर आज मुझ से ख़फ़ा हो गई हैं कल की तरह
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