सब्र-ओ-सुकूँ कहाँ है तिरे इंतिज़ार में दिल इख़्तियार में न नज़र इख़्तियार में फ़ुर्क़त की बात तक भी गवारा न थी जिसे तारे वो गिन रहा है शब-ए-इंतिज़ार में अल्लाह रे ये बादा-ए-रंगीं की शोख़ियाँ ज़ाहिद को पीनी पड़ गई अब की बहार में याद-ए-जमाल-ए-दोस्त के क़ुर्बान जाइए तस्कीन पा रहा हूँ दिल-ए-बे-क़रार में जब तुम हो मेरे पास ख़िज़ाँ भी बहार है तुम ही नहीं तो कैसे लगे दिल बहार में 'जौहर' वो आज आए हैं थामे हुए जिगर कितना असर है नाला-ए-बे-इख़्तयार में