सदफ़ को गौहर-ए-नायाब लिखना ग़लत है ज़िंदगी को ख़्वाब लिखना कोई पूछे तो तुग़्यानी से पहले उमंगें हो गईं ग़र्क़ाब लिखना मिरी हस्ती सिमट जाए तो इक दिन न होने के मिरे अस्बाब लिखना ख़मोशी का कोई पूछे सबब तो शिकन-आलूद हैं आ'साब लिखना नए लोगों की चाहत मतलबी है पुरानी चाहतों का बाब लिखना 'नवेदी' से अगर पूछें घटाएँ है ज़ख़्मों से 'सबा' शादाब लिखना