सदियों का कर्ब लम्हों के दिल में बसा दिया पल भर की ज़िंदगी को दवामी बना दिया दीवार में वो चुन ही रहा था मुझे मगर कम-बख़्त एक संग कहीं मुस्कुरा दिया जब और कोई मद्द-ए-मुक़ाबिल नहीं रहा मेरी अना ने मुझ को मुझी से लड़ा दिया मुझ से न पूछ कल के मुहक़क़िक़ से पूछना शो'लों के लम्स ने मुझे क्यूँ यख़ बना दिया यादों के शहर में भी न 'हैरत' सुकूँ मिला हालात ने मिज़ाज कुछ ऐसा बना दिया