सफ़र ही काफ़ी है 'उम्रें गुज़ारने के लिए
By shariq-kaifiFebruary 29, 2024
सफ़र ही काफ़ी है 'उम्रें गुज़ारने के लिए
वो क्यों ब-ज़िद है मुझे पार उतारने के लिए
वो जुर्म इतना जो संगीन उस को लगता है
किया था मैं ने कोई पल गुज़ारने के लिए
वो सारी सुल्ह-पसंदी वो ख़ाकसारी सब
बहुत ज़रूरी था 'इज़्ज़त से हारने के लिए
झगड़ रहे थे वहाँ सब नई रुतों के अमीं
मिरा पुराना कोई रूप धारने के लिए
तमाम 'उम्र रहा हूँ शिकस्ता कश्ती पर
मैं ना-ख़ुदाओं के एहसाँ उतारने के लिए
उसी पे वुस'अतें खुलती हैं दश्त-ओ-सहरा की
जिसे कोई भी न आए पुकारने के लिए
इक और बाज़ी मुझे उस के साथ खेलना है
उसी की तरह सलीक़े से हारने के लिए
वो क्यों ब-ज़िद है मुझे पार उतारने के लिए
वो जुर्म इतना जो संगीन उस को लगता है
किया था मैं ने कोई पल गुज़ारने के लिए
वो सारी सुल्ह-पसंदी वो ख़ाकसारी सब
बहुत ज़रूरी था 'इज़्ज़त से हारने के लिए
झगड़ रहे थे वहाँ सब नई रुतों के अमीं
मिरा पुराना कोई रूप धारने के लिए
तमाम 'उम्र रहा हूँ शिकस्ता कश्ती पर
मैं ना-ख़ुदाओं के एहसाँ उतारने के लिए
उसी पे वुस'अतें खुलती हैं दश्त-ओ-सहरा की
जिसे कोई भी न आए पुकारने के लिए
इक और बाज़ी मुझे उस के साथ खेलना है
उसी की तरह सलीक़े से हारने के लिए
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